*श्रुतम्-176*
अंग्रेजों ने कैसे नष्ट की भारत की उन्नत चिकित्सा व्यवस्था
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है. विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय, तक्षशिला, भारत में था. ईसा के लगभग एक हजार वर्ष पहले यह प्रारंभ हुआ और ईसा के बाद, पांचवी शताब्दी में हुणों के आक्रमण के कारण बंद हुआ. *इस विश्वविद्यालय में ‘चिकित्सा विज्ञान’ का व्यवस्थित पाठ्यक्रम था. आज से, लगभग 2700 वर्ष पहले, दुनिया को शरीर शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र और औषधी विज्ञान के बारे में हम सुव्यवस्थित ज्ञान दे रहे थे. अर्थात भारत में स्वास्थ्य सेवाएँ मजबूत थी और नीचे तक पहुंची थी, इसके अनेक प्रमाण मिलते हैं.*
कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ इस ग्रंथ मे, पालतू पशु और उनकी देख रेख के संदर्भ में जानकारी दी गई हैं. सम्राट अशोक के कार्यकाल में, अर्थात ईसा से 273 वर्ष पहले, विशाल फैले हुए भारतवर्ष में अस्पतालों का जाल था. *जी हां ! अस्पताल थे और मनुष्यों के साथ जानवरों के थे, इसके प्रमाण मिले हैं.* वर्तमान में भारतीय पशु चिकित्सा परिषद (Veterinary Council of India) का जो लोगो या बैज (सम्मानचिन्ह) हैं, उस में सम्राट अशोक के काल के बैल और पत्थर के शिलालेख को अपनाया हैं.
संयोग ये था, कि जब तक्षशिला विश्वविद्यालय बंद हुआ, उसी के आसपास विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय प्रारंभ हुआ. इसमें भी ‘चिकित्सा विज्ञान’ का पाठ्यक्रम था, और अनेक विद्यार्थी इस पाठ्यक्रम को पढकर, पारंगत होकर अपने अपने गांव जाकर चिकित्सा करते थे. किंतु इसके अलावा, पूरे भारतवर्ष में गुरुकुल व्यवस्था थी, जिसके अंतर्गत भी चिकित्सा विज्ञान अर्थात आयुर्वेद पढाया जाता था।
*चरक संहिता* यह चिकित्सा शास्त्र पर आधारभूत समझा जाने वाला प्राचीन ग्रंथ है. इसके रचना की निश्चित तिथी की जानकारी नहीं है. पर यह साधारण ईसा से पहले सौ वर्ष और ईसा के बाद दो सौ वर्ष के कालखंड में लिखा गया होगा, ऐसा अनुमान है. अर्थात मोटे तौर पर दो हजार वर्ष पुराना ग्रंथ है.
देश के कोने कोने में चिकित्सा करने वाले वैद्यों के लिये यह ग्रंथ, बाकी अन्य ग्रंथों के साथ, प्रमाण ग्रंथ था. यह ग्रंथ, ‘विद्यार्थी कैसा हो, चिकित्सा विज्ञान का उद्देश्य क्या है, कौन से ग्रंथों का ‘संदर्भ ग्रंथ’ के नाते उपयोग करना चाहिये’… ऐसी अनेक बातें बताता है. आज के चिकित्सा शास्त्र के लगभग सारे विषय इस ग्रंथ में सम्मिलित हैं. आज का चिकित्सा शास्त्र जिन विधाओं की बात करता है, उसमें से अधिकतम विधाओं की विस्तृत जानकारी इस पुस्तक में है. जैसे – Pathology, Pharmaceutical, Toxicology, Anatomy आदि।
*इस्लामी आक्रांता आने तक तो देश में चिकित्सा व्यवस्था अच्छी थी. औषधी शास्त्र में भी नये नये प्रयोग होते थे. आयुर्वेद के पुराने ग्रंथों पर भाष्य लिखे जाते थे और नये सुधारों को उनमें जोडा जाता था.*
किंतु इस्लामी आक्रांताओं ने इस व्यवस्था को ही छिन्न भिन्न किया. नालंदा के साथ सभी विश्वविद्यालय और बडी बडी पाठशालाएँ नष्ट कर दी गईं. उसमें उपलब्ध सारा ग्रंथसंग्रह जला दिया गया. किंतु फिर भी अपने यहां जो वाचिक परंपरा है, उसके माध्यम से चिकित्सा विज्ञान का यह ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा. इन आक्रांताओं के पास कोई वैकल्पिक चिकित्सा व्यवस्था नहीं थी. इसलिए उन्होंने भी इस क्षेत्र में कुछ नया थोंपने का प्रयास नहीं किया.
किंतु अंग्रेजों के साथ ऐसा नहीं था. सत्रहवीं शताब्दी से उन्होंने अपनी एक चिकित्सा व्यवस्था निर्माण करने का प्रयास किया था, जिसे एलोपॅथी कहा जाता था. *इस एलोपॅथी के अलावा अन्य सभी चिकित्सा प्रणालियाँ दकियानूसी हैं ऐसा अंग्रेजों का दृढ विश्वास था। इसलिए उन्होंने भारत में, हजारों वर्ष पुराने आयुर्वेद को ‘अनपढ और गंवारों की चिकित्सा पद्धती’, बोलकर भारतीय समाज पर एलोपॅथी थोपी।*
भारत में पश्चिमी चिकित्सा विज्ञान पर आधारित पहला अस्पताल पोर्तुगीज लोगों ने बनाया, अंग्रेजों ने नही। सन् 1512 में गोवा में, एशिया का एलॉपॅथी पर आधारित पहला अस्पताल प्रारंभ हुआ. इसका नाम था, ‘Hospital Real do Spiricto Santo’
1757 की प्लासी की लडाई जीतने के बाद, एक बडे भूभाग पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया. अपने प्रशासन के प्रारंभ से ही उन्होंने चिकित्सा विज्ञान की भारतीय पद्धति को हटा कर पाश्चात्य एलॉपेथी प्रारंभ की।
प्रारंभ में भारतीय नागरिकों ने इस पाश्चात्य व्यवस्था का पुरजोर विरोध किया किंतु 1818 में मराठों को परास्त कर, देश का प्रशासन संभालते समय और बाद में 1857 के स्वातंत्र्य युद्ध की समाप्ती के बाद, पाश्चात्य चिकित्सा व्यवस्था को जबरदस्ती लागू किया गया।