श्रुतम्-113
आजादी के आंदोलन में संघ की भूमिका
भाग-2
इस संबंध में संघ की बात करनी है तो डॉ. हेडगेवार से ही करनी पड़ेगी। केशव (हेडगेवार) का जन्म 1889 का है। नागपुर में स्वतंत्रता आन्दोलन की चर्चा 1904-1905 से शुरू हुई। उसके पहले अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आन्दोलन का बहुत वातावरण नहीं था। फिर भी 1897 में रानी विक्टोरिया के राज्यारोहण के हीरक महोत्सव के निमित्त स्कूल में बांटी गई मिठाई 8 साल के केशव ने ना खाकर कूड़े में फेंक दी। यह था उसका अंग्रेजों के गुलाम होने का गुस्सा और चिढ़। 1907 में रिस्ले सेक्युलर नाम से ‘वंदे मातरम्’ के सार्वजनिक उद्घोष पर पाबंदी का जो अन्यायपूर्ण आदेश घोषित हुआ था, उसके विरोध में केशव ने अपने नील सिटी विद्यालय में सरकारी निरीक्षक के सामने अपनी कक्षा के सभी विद्यार्थियों द्वारा ‘वन्दे मातरम्’ उद्घोष करवा कर विद्यालय के प्रशासन का रोष और उसकी सजा के नाते विद्यालय से निष्कासन भी मोल लिया था। डॉक्टरी पढ़ने के लिए मुंबई में सुविधा होने के बावजूद क्रांतिकारियों का केंद्र होने के नाते उन्होंने कलकत्ता को पसंद किया। वहां वे क्रांतिकारियों की शीर्षस्थ संस्था ‘अनुशीलन समिति’ के विश्वासपात्र सदस्य बने थे।
सहन नहीं की थी क्रांतिकारियों की निंदा –
सन् 1921 में जब प्रांतीय कांग्रेस की बैठक में क्रांतिकारियों की निंदा करने वाला प्रस्ताव रखा गया तो डॉ. हेडगेवार ने इसका जबरदस्त विरोध किया, परिणामस्वरूप प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। बैठक की अध्यक्षता लोकमान्य अणे ने की थी। उन्होंने लिखा— डॉ. हेडगेवार क्रांतिकारियों की निंदा एकदम पसंद नहीं करते थे। वे उन्हें ईमानदार देशभक्त मानते थे। उनका मानना था कि कोई उनके तरीकों से मतभिन्नता रख सकता है, परंतु उनकी देशभक्ति पर उंगली उठाना अपराध है।