*श्रुतम्-155*
*आज मैं अपनी आंखों से पूरा भारत एक साथ देख रहा हूँ।*
पूजनीय डॉक्टर जी के आदेशानुसार 23 अप्रैल 1940 को पुणे का अधिकारी शिक्षण वर्ग प्रारंभ हुआ। इस शिक्षण वर्ग में सबसे पहले संघ की शाखा, आज्ञाओ एवं प्रार्थना का प्रयोग हुआ ।
शारीरिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद भी डॉक्टर जी वर्ग में चलने वाले सभी शारीरिक एवं बौद्धिक कार्यक्रमों पर निगाह रखते थे । प्रतिदिन दोपहर में जिला अनुसार बैठक लेते , इस शिविर में सभी प्रांतों से स्वयंसेवकों को देखकर डॉक्टर जी ने यह टिप्पणी की कि “आज मैं अपनी आंखों से पूरा भारत एक साथ देख रहा हूँ। ”
वर्ग में ही उनका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया था ।
वर्ग समाप्ति के बाद डॉक्टर जी का उठना, बैठना, लेटना भी जब कठिन हो गया तो डॉक्टर से परामर्श किया गया और डॉक्टर ने पीठ में लंबर पंक्चर का निर्णय किया।
लंबर पंक्चर के दौरान पीठ से एकदम से पानी की धार बहने लगी और डॉक्टर जी को असहनीय पीड़ा हुई।
इसके बाद भी स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ ।
20जून रात 11:00 बजे बाद बुखार और तेज गति से बढ़ने लगा।
21 जून 1940 शुक्रवार प्रातः बुखार 106 डिग्री तक पहुंच गया । तब डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया । फिर ठीक 9:00 बज कर 27 मिनट पर डॉक्टर जी का श्वास बंद हो गया और गर्दन एक और लुढ़क गई ।
चारों तरफ रुदन शुरू हो गया।”डॉक्टर जी नहीं रहे” यह समाचार पूरे नागपुर, महाराष्ट्र और देशभर में आग की तरह फैल गया। शाम 5:00 बजे डॉक्टर जी की शव यात्रा निकालने का निर्णय हुआ । परंतु शाम को बहुत तेज मेघ गर्जना के साथ मेघ बृष्टि हुई मानो मेघों ने भी अपने अंतःकरण के दुःखों को आंसू बहा कर हल्का किया हो।
लगभग 9:00 बजे यह शव यात्रा रेशम बाग संघस्थान पहुंची। यहां पर अंतिम संस्कार करने की अनुमति मिल चुकी थी इस स्थान पर संघ की केंद्र शाखा चलती है और प्रतिवर्ष अधिकारी शिक्षण वर्ग भी आयोजित होते हैं अतः डॉक्टर जी इस स्थान को तपोभूमि कहते थे अतः डॉक्टर जी का अंतिम संस्कार यही करने का निर्णय लिया।