*श्रुतम्-206*
*खेल खेल में अद्भुत श्रद्धा प्रकटी बच्चों में राम के प्रति*
जैनेन्द्र कुमार ने लिखा कि एक दिन जब वे राम कथा सुनकर लौटे तो देखा कि बच्चे बाहर पड़े रेत के ढेर में घर बनाने का खेल कर रहे हैं। वे वहीं बग़ीचे में रखी बेंच पर बैठकर बच्चों का खेल देखने लगे। बच्चे रेत में पैर पसार कर बड़ी सावधानी से अपना अपना घर बना रहे थे और घर बनाने का यानी नव निर्माण का आनंद ले रहे थे। हम बड़े लोग अपने जीवन में आनंद पाने के लिए ढेरों उपाय करते हैं फिर भी आनंदित नहीं रह पाते हैं । बच्चों के जीवन में छोटी छोटी सी बातें भी उन्हें आनंदित करती है क्योंकि वहाँ सहजता है हार्दिक भाव है। घर रेत का है, क्षण भर में ढह जाने वाला है पर सृजन का आनंद अपना अलग अलग है। मिट जाने की चिंता और पीड़ा बच्चों को नहीं घेरती इसलिए उनके द्वारा किया गया रचनात्मक कार्य आनंद देता है। जैनेंद्र कुमार ने देखा कि दो बच्चों ने अपना घर पास बनाया है लगता है दोनों भाई बहन हैं । बड़ी मज़े की बात यह है कि घर बनाते समय यह भी ध्यान रखा गया है कि धुआँ कहाँ से निकलेगा तो बहिन ने रेत के घर में एक मशीन की तिल्ली लगा दी है । मानो यह धुआँ निकलने की चिमनी है, इस तरह पूरा घर बन गया है ।
अब सब अपने घर दूसरे से ज़्यादा बड़ा और अच्छा साबित करने में लग गए हैं तुलना होने लगी आपस में । भाई ने बहिन से कहा कि मेरा घर तुमसे बड़ा है बहिन ने भी सहज भाव से कहा कि मेरा घर भी तुमसे बड़ा है। फिर बाद दुगुने और चौगुने पर पहुँच गई बढ़ते बढ़ते बाद सौ गुने तक पहुँची गिनती इतनी ही आती थी तो बहिन ने सोचते सोचते कहा मेरा घर राम जी बराबर बड़ा है अब भाई क्या कहे उसे कुछ नहीं सूझा तो बोला कि मेरा घर दो रामजी बराबर बढ़ा है, ऐसा सुनते ही बहिन ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी सभी बच्चे हँसने लगे और बहिन ने भाई को समझाते हुए कहा कि रामजी दो नहीं होते हैं राम जी तो एक ही है, बात छोटी सी थी। लेकिन बहुत गहरी थी, बहुत छोटे बच्चों मे भी गहरी श्रद्दा है कि रामजी जैसा कोई नहीं रामजी एक ही हो सकते है। जैनेंद्र कुमार ने लिखा कि बच्चों की भगवान के प्रति ऐसी अटूट श्रद्दा देखकर लगा कि मैं वर्षों से रामकथा सुन रहा हूँ पर जैसी दृढ़ आस्था बच्चों की है वैसे शायद मेरी भी नहीं है।