*श्रुतम्-265*
*पवित्र नदियाँ*
*सरस्वती नदी*
वेदों में उल्लिखित यह पवित्र नदी हिमालय से निकलकर वर्तमान हरियाणा राजस्थान गुजरात प्रदेशों को सींचती हुई सिंधु सागर में मिलती थी।
कालांतर में *भूगर्भीय हलचलों के कारण अंबाला के आसपास का क्षेत्र ऊंचा हो गया, जिससे इस नदी का जल अन्य सरिताओं में मिल गया और यह नदी विलुप्त हो गई।*
एक अन्य खोज के अनुसार इस नदी का जल रिस-रिसकर पृथ्वी के अंदर चला गया।
*आज भी हरियाणा तथा राजस्थान प्रदेशों में पृथ्वी के अंदर ही अंदर प्रवाहित हो रही है।*
गुजरात के *कच्छ के रण में विलीन होने वाली लूनी नदी* को इसका विशेष कहा जा सकता है।
वेदों की रचना इस नदी के आस-पास के प्रदेश *(सारस्वत प्रदेश)* में हुई।
मनु के अनुसार पृथूदक (पेहवा) इस नदी के तट पर बसा था।
*सरस्वत्याश्च तीर्थानि*
*तीर्थेभ्यश्च पृथूदकम्।*
*पृथूदकात् पुण्यतमं*
*नान्यत तीर्थ नरोत्तम।।* (महाभारत वनपर्व)
ऋग्वेद में सरस्वती का वर्णन केवल नदी के रूप में नहीं, वाणी व विद्या की देवी के रूप में भी हुआ है।
यह सत्य तथा अच्छाई की प्रेरणा देती है।
गंगा के समान इसके तट पर अनेक तीर्थों का विकास हुआ है।
*महाभारत, स्कन्द, पद्मपुराण, देवी भागवत* आदि ग्रंथों में इसका वर्णन बड़ी श्रद्धा भक्ति के साथ किया गया है।
सरस्वती हिमालय से निकलकर *पृथूदक, कुरुक्षेत्र, विराट, पुष्कर, अर्बुदारण्य, सिद्धपुर, प्रभास* आदि स्थानों से होते हुए सागर से मिलती है।