*श्रुतम्-261*
*पुण्यभूमि भारत*
*उत्तरं यत् समुद्रस्य*
*हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।*
*वर्षं तद् भारतम् नाम*
*भारती यत्र संततिः।।*
हिंद महासागर के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित महान् देश भारतवर्ष के नाम से जाना जाता है, यहां का पुत्ररूप समाज भारतीय है।
प्रत्येक भारतीय को यह देश प्राणों से प्यारा है। क्योंकि इसका कण-कण पवित्र है, तभी तो प्रत्येक सच्चा भारतीय अर्थात् हिंदू गाता है- *कण-कण में सोया शहीद, पत्थर-पत्थर इतिहास है।*
इस भूमि पर पग-पग में उत्सर्ग और शौर्य का इतिहास अंकित है।
श्री गुरुजी गोलवलकर उसकी *साक्षात् जगज्जननी* के रूप में उपासना करते थे।
स्वामी विवेकानंद ने श्रीपाद शिला पर इसका *जगन्माता के रूप में साक्षात्कार* किया।
वह भारत माता हमारी आराध्या है। उसके स्वरुप का वर्णन वाणी व लेखनी द्वारा असंभव है, फिर भी माता के पुत्र के नाते उसके *भव्य-दिव्य स्वरुप* का अधिकाधिक ज्ञान हमें प्राप्त करना चाहिए।
कैलास से कन्याकुमारी, अटक से कटक तक विस्तृत इस महान् भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों व धार्मिक स्थानों की जानकारी हम निरंतर प्राप्त करेंगे।
भारतवर्ष की राष्ट्रीय एकात्मता के सूत्र इसके इतिहास, भूगोल, धर्म-दर्शन और संस्कृति में सर्वत्र विपुल मात्रा में विद्यमान है। जिन *नदी तटों* पर हमारे पूर्वजों ने ऐसा वांगमय रचा जो मानव सभ्यता का मानदंड बन गया।
जिन *पर्वतों* की कंदराएं ऋषियों की तपस्या से धन्य हुई, जो *सरोवर* उनकी साधना के साक्षी बने, उनके दर्शन और स्पर्श से तन-मन के पाप ताप का शमन होता है। इन *तीर्थों की यात्रा* और उसके माध्यम से होने वाले चारों दिशाओं में अंतिम क्षणों तक संपूर्ण देश के दर्शन का पुण्य हमें प्राप्त करना चाहिए।