*श्रुतम्-225*
*प्रताप का राजतिलक*
अकबर ने चित्तौड़ के किले में प्रवेश कर वहां रह रहे 30,000 निर्दोष स्त्री, पुरुष व बच्चों का कत्लेआम कर अपनी तथाकथित जीत का जश्न मनाया। यह है छद्म मानवतावादी अकबर दी ग्रेट का असली चेहरा…. जिसने मानवीय सभ्यता के चेहरे पर कालिख पोत दी।
महाराणा उदयसिंह इस नृशंस हत्याओं की पीड़ा को सह नहीं सके। वे गोगुंदा में राजधानी बनाकर रहने लगे। अस्वस्थता के कारण *28 फरवरी 1572 ईस्वी में होली के दिन* उनका स्वर्गवास हो गया। श्मशान में युवराज प्रताप को देखकर सामंतों में कानाफूसी होने लगी। तब मालूम हुआ कि *भट्टियाणी रानी के पुत्र जगमाल* को उदय सिंह ने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है।
मेवाड़ की परंपरा अनुसार जेष्ठ पुत्र ही गद्दी का हकदार होता है। इस विपरीत परिस्थिति में *कृष्णदास व रावत सांगा* ने सामंतों से विचार विमर्श कर दाह संस्कार कर लौटते समय *महादेव जी की बावड़ी* पर प्रताप का राजतिलक कर दिया।
बाद में महलों में जाकर जगमाल को गद्दी से उतार कर 32 वर्षीय प्रताप का विधिवत राज्याभिषेक किया गया। यह कांटो भरा ताज था। मेवाड़ क्षेत्रफल, धन-धान्य में छोटा हो गया था। प्रताप ने तुरंत ही सैन्य पुनर्गठन व राज्य व्यवस्था पर ध्यान देना शुरू कर दिया।
जनशक्ति को जागृत करने हेतु प्रताप ने भीषण प्रतिज्ञा की- *”जब तक मैं शत्रुओं से अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र नहीं करा लेता तब तक मैं न तो महलों में रहूंगा, न ही सोने चांदी के बर्तनों में भोजन करूंगा। घास ही मेरा बिछौना तथा पत्तल दोनें ही मेरे भोजन पात्र होंगे।”*