*श्रुतम्-165*
*भारतीय काल गणना की वैज्ञानिकता भाग-1*
कालातीत चिंतन तो बुद्धि के सामर्थ्य से परे की बात है क्योंकि काल के नियंता तो महाकाल शिव हैं अतः काल विद्या के गुरु भी महाकाल शिव ही हुए । महाकाल के अनादि और अनंत स्वरूप में अनेक राष्ट्र और संस्कृतियां उदय हुई और अस्त भी।
*पर कोई बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी-* यह कोई बात हमारी संस्कृति और हमारे जीवन मूल्य हैं । सब राष्ट्रों का जन्म और पालन-पोषण उनकी संस्कृति और परंपरा में ही होता है।
प्रत्येक प्राचीन राष्ट्र की परंपरा का प्रारंभ सृष्टि की कथा से ही होता है ।भारतीय परंपरा एक ऐसी वैशिष्ट्य पूर्ण ऐतिहासिक श्रृंखला है जो भूत से वर्तमान को बांधे हुए हैं। यहाँ के चतुर्वर्णीय समाज द्वारा जितने भी धार्मिक क्रियाकलाप संपन्न किए जाते हैं, उनमें संकल्प करने का विधान है। संकल्प करवाने में संवत, अयन, ऋतु ,मास ,तिथि, वार तथा नक्षत्र का उच्चारण होता है। भारतीय कालगणना कल्प मन्वंतर युगादि के पश्चात संवत्सर से प्रारंभ होती है सतयुग में ब्रम्हा संवत, त्रेता में वामन संवत, द्वापर में युधिष्ठिर संवत और कलयुग में विक्रम संवत प्रचलन में हैं अथवा रहे हैं। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो भारतीय कालगणना वैदेशिक काल गणना की तुलना में अत्यंत प्राचीन है।
भारतीय कालगणना का पुण्य प्रवाह जहां *कल्पाब्द संवत एक अरब 97 करोड़ 29 लाख 85 हजार123 वर्ष* ,
*सृष्टि संवत एक अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हजार 123 वर्ष ,*
*श्रीराम संवत एक करोड़ 25 लाख 69 हजार123वर्ष ,*
*कृष्ण संवत 5247 वर्ष तथा विक्रम संवत 2078 वर्ष से प्रवाहित है।*
वहीं वैदेशिक संवतों में चीनी संवत 9 करोड़ 60 लाख 2 हजार 319वर्ष , पारसी संवत 1 लाख 87 हजार988 वर्ष,
मिस्र संवत 27 हजार 675वर्ष ,
तुर्की संवत 7 हजार 628 वर्ष ,
यूनानी 3 हजार 594 वर्ष, ईसवी 2021 वर्ष तथा हिजरी संवत मात्र 1442 वर्ष पुराना है ।
भारतीय कालगणना की सबसे छोटी इकाई कलयुग की है ,जो कि 4 लाख 32 हजार वर्ष का है। वर्तमान काल श्वेत वाराह कल्प के वैवस्वत मन्वंतर का 28 वां कलयुग है । इसकी भी यदि आयु निकाली जाए तो वह भी आज 5123 वर्ष होती है।
*यह तुलनात्मक स्थिति सिद्ध करती है कि भारतीय कालगणना अत्यंत प्राचीन एवं वैज्ञानिक है ।*