*श्रुतम्-158*
*भारत के सर्वांगीण विकास और राष्ट्रीय पुनरुत्थान के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय हिंदू समाज का सुधार एवं आत्म-उद्घार है।*
डाॅ. अम्बेडकर मानते थे कि धर्म के मूल्य जीवन के लिये उत्प्रेरक होते हैं, इसी कारण वे मार्क्सवाद के पक्ष में नहीं थे।सामाजिक बदलाव के वाहक भारत के सर्वांगीण विकास और राष्ट्रीय पुनरुत्थान के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय हिंदू समाज का सुधार एवं आत्म-उद्घार है। हिंदू धर्म मानव विकास और ईश्वर की प्राप्ति का स्रोत है। किसी एक पर अंतिम सत्य की मुहर लगाए बिना सभी रूपों में सत्य को स्वीकार करने, मानव-विकास के उच्चतर सोपान पर पहुंचने की गजब की क्षमता है वे मानते थे कि श्रीमद्भगवद्गीता में इस विचार पर जोर दिया गया है कि व्यक्ति की महानता उसके कर्म से सुनिश्चित होती है न कि जन्म से। इसके बावजूद अनेक ऐतिहासिक कारणों से इसमें आई नकारत्मक चीजों, ऊंच-नीच की अवधारणा आदि इसका सबसे बड़ा दोष रहा है। यह अनेक सहस्राब्दियों से हिंदू धर्म आधारित जीवन का मार्गदर्शन करने वाले सिद्घातों के भी प्रतिकूल है।
हिंदू समाज ने अपने मूलभूत सिद्घातों का पुन: पता लगाकर तथा मानवता के अन्य घटकों से सीखकर समय समय पर आत्मसुधार की इच्छा एवं क्षमता दर्शाई है। सैकड़ों सालों से वास्तव में इस दिशा में प्रगति हुई है। इसका श्रेय आधुनिक काल के संतों एवं समाज सुधारकों यथा स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, राजा राममोहन राय, महात्मा ज्योतिबा फुले एवं उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले, नारायण गुरु, गांधीजी और डाॅ. बाबा साहब अम्बेडकर को जाता है। इस संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा इससे प्रेरित अनेक संगठन हिंदू एकता एवं हिंदू समाज के पुनरुत्थान के लिए सामाजिक समानता पर जोर दे रहे है ।
संघ के तृतीय सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस कहते थे, यदि अस्पृश्यता पाप नहीं है तो इस संसार में अन्य दूसरा कोई पाप हो ही नहीं सकता। वर्तमान वंचित समुदाय जो अभी भी हिंदू है, अधिकांशत: उन्हीं साहसी ब्राह्मणों व क्षत्रियों का ही वंशज है, जिन्होंने जाति से बाहर होना स्वीकार किया किंतु विदेशी शासकों द्वारा जबरन मत परिवर्तन स्वीकार नहीं किया। हिंदू समाज के इस सशक्तिकरण की यात्रा को डा़ अम्बेडकर ने आगे बढ़ाया।
*अम्बेडकर जी का दृष्टिकोण न तो संकुचित था और न ही वे पक्षपाती थे।* वंचितों को सशक्त करने और उन्हें शिक्षित करने का उनका अभियान एक तरह से हिंदू समाज और राष्ट्र को सशक्त करने का अभियान था। उनके द्वारा उठाए गए सवाल जितने उस समय प्रासंगिक थे, वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं कि *अगर समाज का एक बड़ा हिस्सा शक्तिहीन और अशिक्षित रहेगा तो हिंदू समाज और राष्ट्र सशक्त कैसे हो सकता है?*
वे बार बार सवर्ण हिंदुओं से आग्रह कर रहे थे कि विषमता की दीवारों को गिराओ, तभी हिंदू समाज शक्तिशाली बनेगा।