*श्रुतम्-150*
*महान् कर्तव्यपूर्ति के लिए लग गया जीवन*
डॉक्टर जी ने अपने जीवन के अनुरूप ही अपने जीवन की रूपरेखा निश्चित की और उसमें किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होने दी ।
इसी हेतु डॉक्टर जी ने आमरण विवाह नहीं किया उन्हें यह स्पष्ट दिख रहा था कि विवाहित कर्तव्य से श्रेष्ठ अन्य महान कर्तव्य उ
उसी को निभाने में उन्हें अपने आयुष्य की सार्थकता प्रतीत होती थी । वे किसी प्रकार के व्यक्तिगत या अन्य मोह से अपना मन को नियत कर्तव्य से तिल मात्र भी विचलित नहीं होने देना चाहते थे। इसलिए मन ही मन उन्होंने आजम आजन्म ब्रह्मचारी रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की ।
अपने जीवन के प्रति अमर निष्ठा रखने का तो उनका दृढ़ संकल्प था । इसी काम में दिन के 24 घंटे भी उन्हें अल्प प्रतीत होते थे ।
*ईश्वरीय कार्य की धुन में तन्मय रहने वाले इस श्रेष्ठ पुरुष की आजीविका निभाने का जिम्मा स्वयं भगवान ने ले रखा था ।* हाथ सदा तंग रहता था आर्थिक चिंता बनी रहती थी पर वह कभी हताश नहीं हुए इतना ही नहीं उन्होंने औरों को भी अपनी गरीबी का पता तक न लगने दिया ।नकी बाट देख रहा है ।