*श्रुतम्-212*
*मिजोरम-रियांग शरणार्थी*
वनवासी कल्याण आश्रम वनवासियों के हितों की रक्षा करने में सदा ही अग्रणी रहा है। वह पहला और अकेला ऐसा स्वयंसेवी संगठन था जिसने उत्पीड़न के शिकार रियांग जनजाति के लगभग 31000 व्यक्तियों को सभी प्रकार की सहायता तत्काल प्रदान की। उन्हें वर्ष 1997 में ईसाई मत स्वीकार न करने के कारण मिजोरम के बाहर खदेड़ दिया गया था। यहां तक कि उनके 23 मंदिर भी नष्ट कर दिए गए थे। किंतु इस पर भी जब उन्होंने धर्मांतरण को स्वीकार नहीं किया तो मिजो आतंकवादी संगठनों ने ईसाई प्रचारकों के उकसाने पर तथा राज्य की सशस्त्र पुलिस के साथ मिलकर लूटमार आगजनी हत्या और रिआंग महिलाओं के साथ बलात्कार का निर्बाध दौर प्रारंभ कर दिया। इन सब कारणों से उनके अत्याचार के शिकार लोग असहाय हो गए और उन्हें जंगलों में शरण लेनी पड़ी। वे आज भी असम और त्रिपुरा के सीमावर्ती जंगलों में ही हैं।
वनवासी कल्याण आश्रम ने उनके लिए सहायता शिविर लगाए तथा उन्हें चावल और नमक के साथ-साथ कंबल, स्वेटर मच्छरदानिया और कपड़े आदि सामग्री बांटे। जैसे जैसे देश के विभिन्न भागों से वनवासी कल्याण आश्रम को अधिक सहायता मिलती जा रही है वैसे वैसे ही सहायता प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की संख्या तथा वितरित की जा रही वस्तुओं की मात्रा और परिमाण भी बढ़ता जा रहा है।
यहां चिंतन करने का विषय यह है कि संपूर्ण भारतवर्ष में ईसाई मशीनरी सेवा और तथाकथित प्रेम व भाईचारे का चोला ओढ़कर संपूर्ण देश में विभाजन कारी संगठनों का सहयोग करके और हिंदू समाज को बांटने का कार्य निरंतर कर रहे हैं।
और सत्ता के भूखे तथाकथित सेकुलरवादी राजनीतिक दल उनको निरंतर सहयोग कर रहे हैं।