स्वाधीनता का अमृत महोत्सव
मध्यभारत के गुमनाम नायक (Unsung Heroes) ……
यशवंत सिंह कुशवाह
यशवंत सिंह कुशवाह का जन्म सन् 1916 में हुआ। आपके पिता का नाम राजाराम सिंह था। आपका जन्म स्थान जिला भिण्ड और जिला इटावा उ.प्र. की सीमा पर बसे हुए छोटे से ग्राम गढ़ी मंगद है। सूर्यवंशीय महाराजा रामचन्द्र जी के ज्येष्ठ पुत्र महाराजा कुश के प्रसिद्ध वंश में जन्म होने से ‘राम व रामायण’ के आदर्श से बाल जीवन से ही प्रभावित।
प्रतिभावान छात्र होने से समस्त छात्र जीवन उत्तरप्रदेश में शासन द्वारा छात्रवृत्ति प्राप्त। छात्र जीवन में राष्ट्र सेवा का व्रत लिया।
सन् 1934 में भिण्ड जिले के ऐसे ग्रामों में शिक्षा प्रसार कार्य, जहाँ शिक्षा हेतु प्राथमिक शालायें भी नहीं थी। सन् 1935 से भिण्ड नगर में मेहतरों को पढ़ाने का कार्य किया। इस हेतु ‘‘कल्याणी पाठशाला’’ स्थापित की।
सन् 1939 भारत रक्षा अधिनियम के तहत् भिण्ड हवालात में बन्द रहे। बाद में 6 माह की कठोर सजा और 50 रूपये की आर्थिक दण्ड भी लगाया गया। ग्वालियर जेल में आपको बेड़िया पहनाकर डकैत आदि कैदियों के साथ रखा गया। 8 अप्रेल 1942 को पुनः भारत रक्षा अधिनियम में बन्दी रहे।
इसी सजा के चालू रहने के दिनों में ग्वालियर की अदालत में एक ओर अभियोग चलाकर एक साल की सजा दी गई। जेल में सात दिवसीय अनसन, 3 दिवसीय सामूहिक अनसन, सामूहिक वस्त्रत्याग सत्याग्रह किया, तब राजनैतिक कैदी की सुविधा दी गई। ग्वालियर कारागार से क्रमशः सबलगढ़, मुंगावली और शिवपुरी जेलों में रखा गया। 30 जून 1943 को रिहाई हुई।
आपने लेखों और कहानियों का प्रचुर मात्रा में लेखन कार्य भी किया। कहानी संग्रह ‘नेहदीप’ को मध्यप्रदेश कथा साहित्य शासन द्वारा प्रथम पुरुस्कार देकर पुरस्कृत किया।