*श्रुतम्-243*
*रामायण कालीन ऐतिहासिक भगवान शिव का मंदिर*
मुरुदेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास रामायण काल से जुड़ा हुआ है. बताया जाता है कि शिव पुराण में भगवान शिव के आत्मलिंग के बारे में बताया गया है. रावण ने अमरता का वरदान प्राप्त करने और महा-शक्तिशाली बनने के लिए भगवान शिव को अपनी तपस्या से प्रसन्न किया और उनसे आत्मलिंग प्राप्त किया. इसके बाद जब रावण ने उस आत्मलिंग को लंका ले जाने का प्रयास किया, महादेव ने रावण से कहा कि इसे जब भी जमीन पर रखोगे तो ये वहीं स्थापित हो जाएगा, फिर इसे कोई उठा भी नहीं पाएगा।
दैवीय कारणों से हुआ भी ऐसा ही, भगवान शिव को मुरुदेश्वर के नाम से भी जाना जाता है. इसलिए यह मंदिर जहां स्थित है, उस कस्बे का नाम मुरुदेश्वर और मंदिर का नाम मुरुदेश्वर मंदिर पड़ गया. मंदिर की स्थित की बात करें तो यह *भारत के कर्नाटक राज्य में उत्तर कन्नड़ जिले के भटकल तहसील की कंडुका पहाड़ी पर स्थित हैं.*
इस मंदिर में आपको आध्यात्मिक दिव्यता के साथ प्राकृतिक सौन्दर्य भी देखने को मिलता है।
मुरुदेश्वर मंदिर के बाहर बनी शिव भगवान की मूर्ति विश्व की दूसरी सबसे ऊँची शिव मूर्ति है और इसकी ऊँचाई 123 फीट है. अरब सागर में बहुत दूर से इसे देखा जा सकता है. इसे बनाने में दो साल लगे थे और शिवमोग्गा के काशीनाथ और अन्य मूर्तिकारों ने इसे बनाया था. इसका पुनर्निर्माण स्थानीय श्री आर एन शेट्टी ने करवाया और लगभग 5 करोड़ भारतीय रुपयों की लागत आई थी. मूर्ति को इस तरह बनवाया गया है कि सूरज की किरणे इस पर पड़ती रहें और यह चमकती रहे।