*श्रुतम्-160*
*शिक्षा, रोजगार और आरक्षण के संबंध में अम्बेडकर जी का व्यापक चिन्तन*
सामाजिक व्यवस्था में हर व्यक्ति का अपना अपना योगदान है, पर राजनीतिक दृष्टि से यह योगदान तभी संभव है जब समाज और विचार दोनों प्रजातांत्रिक हों। आर्थिक कल्याण के लिए आर्थिक दृष्टि से भी प्रजातंत्र जरूरी है। आज लोकतांत्रिक और आधुनिक दिखाई देने वाला देश, अम्बेडकर के संविधान सभा में किये गए सत्ता, वैचारिक संघर्ष और उनके व्यापक दृष्टिकोण का नतीजा है, जो उनकी देख-रेख में बनाए गए संविधान में क्रियान्वित हुआ है, लेकिन फिर भी संविधान वैसा नहीं बन पाया जैसा अम्बेडकर चाहते थे, वह इस संविधान से खुश नहीं थे। आखिर अम्बेडकर आजाद भारत के लिए कैसा संविधान चाहते थे?
*शिक्षा, रोजगार और आरक्षण*
अम्बेडकर चाहते थे कि देश के हर बच्चे को एक समान, अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा मिले, चाहे व किसी भी जाति, पंथ या वर्ग का क्यों न हो। वे संविधान में *शिक्षा को मौलिक अधिकार* बनवाना चाहते थे। देश की आधी से ज्यादा आबादी बदहाली, गरीबी और भुखमरी से जूझती अमानवीय जीवन जीने को अभिशप्त है। इस आबादी की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ही अम्बेडकर ने *रोजगार के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने की वकालत* की थी। संविधान में मौलिक अधिकार न बन पाने के कारण आज भी करोड़ों लोग बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। बाबा साहब ने वंचित वर्गों के लिए शिक्षा और रोजगार में आरक्षण दिए जाने की वकालत की थी ताकि उन्हें दूसरों की तरह बराबरी के मौके मिल सकें। अगर शिक्षा, रोजगार और आवास को मौलिक अधिकार बना दिया जाता तो उन्हें आरक्षण की वकालत करने की शायद जरूरत ही न पड़ती।
डा़ अम्बेडकर प्रजातांत्रिक सरकारों की कमी से परिचित थे, इसलिए उन्होंने साधारण कानून की बजाय संवैधानिक कानून को महत्व दिया। वर्तमान में हम देख रहे हैं कि किस प्रकार सरकारें अपने स्वार्थ और वोट-बैंक के लिए कानूनों की मनमानी व्याख्या करना चाहती हैं, इसके लिए हम उत्तर प्रदेश में अतिपिछड़ों और अतिदलितों या आंध्र प्रदेश में मुस्लिम आरक्षण और मतांंतरित ईसाइयों या मुस्लमानों के लिए रंगनाथ कमीशन की रिपोर्ट को देख सकते हैं जो सरकारों के हिसाब से तय होती हैं।
*मजदूर अधिकारों पर* अम्बेडकर का मानना था कि वर्ण व्यवस्था केवल श्रम का ही विभाजन नहीं है यह श्रमिकों का भी विभाजन है।
वंचितों को भी मजदूर वर्ग के रूप में एकत्रित होना चाहिए। मगर यह एकता मजदूरों के बीच जाति की खाई को मिटा कर ही हो सकती है।
अम्बेडकर की यह सोच बेहद क्रांतिकारी है क्योंकि यह भारतीय समाज की सामाजिक संरचना को सही और वास्तविक समझ की ओर ले जाने की कोशिश है।