*श्रुतम्-232*
*शिवाजी महाराज की भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था*
शिवाजी ने राजदरबारों और शासन प्रणाली में निहित भ्रष्टाचार को देख-समझ लिया था। साधारण बुद्धि का राजा होता, तो अपने दरबार में या अपने शासन में निहित भ्रष्टाचार को समाप्त करवा कर ही स्वयं को महान समझ लेता। लेकिन शिवाजी महाराज एक कदम और आगे गए। उन्होंने अपने राज्यक्षेत्र में तो भ्रष्टाचार को समाप्त किया ही, इसी हथियार का प्रयोग अपने राज्य के विस्तार में किया।
*अनिल माधव दवे* ने अपनी पुस्तक *‘शिवाजी एंड सुराज’* में लिखा है, ‘‘महाराज को राज व्यवहार में भ्रष्टाचार, चाहे वह आचरण में हो या अर्थतंत्र में, बिल्कुल अस्वीकार्य था। उनके सौतेले मामा मोहिते ने रिश्वत ली, यह जानकारी महाराज को मिली तो उन्होंने तत्काल उसे कारागार में डाल दिया और छूटने पर पिता शाह जी के पास भेज दिया।’’
पुस्तक के अनुसार, ‘‘इसी प्रकार एक दबंग ने गरीब किसान की भूमि हड़पने की कोशिश की। शिवाजी ने अपने पद एवं शक्ति का गलत प्रयोग करने वाले उस बड़े किसान को न केवल दंडित किया, बल्कि गरीब की भूमि भी सुरक्षित करवा दी।’’
अपने अधिकारियों को लिखे 13 मई 1671 के एक पत्र में शिवाजी लिखते हैं, *‘‘अगर आप जनता को तकलीफ देंगे और कार्य संपादन हेतु रिश्वत मांगेंगे तो लोगों को लगेगा कि इससे तो मुगलों का शासन ही अच्छा था और लोग परेशानी का अनुभव करेंगे।’’* दवे लिखते हैं, ‘‘छत्रपति शिवाजी भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ थे। इसमें केवल आर्थिक नहीं, बल्कि चारित्रिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार भी शामिल था। उनकी भ्रष्टाचार की परिभाषा बेहद व्यापक थी, जिसकी हिमायत सभी देश भक्त नागरिक कर रहे हैं।’’
छत्रपति शिवाजी ने राज्य स्थापना की शुरुआत पुणे में स्थित तोरण के दुर्ग पर कब्जे से की, जो उस समय बीजापुर सल्तनत के अधीन था। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह बीमार पड़ गए थे और इसी का फायदा उठाकर शिवाजी महाराज ने तोरण के दुर्ग पर अपना अधिकार जमा लिया।
शिवाजी महाराज ने आदिलशाह के दरबारियों को पहले ही खरीद लिया और फिर सुल्तान के पास अपना एक दूत भेजकर खबर भिजवाई कि हम आपको आपके किलेदार से ज्यादा पैसा देंगे। अगर आपको किला (वापस) चाहिए तो अच्छी रकम देनी होगी। किले के साथ-साथ उनका क्षेत्र भी उनको सौंप दिया जाएगा। इसके बाद उन्होंने दस किलोमीटर दूर स्थिति एक और किला अपने नियंत्रण में ले लिया। आदिलशाह ने शाहजी राजे को अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने के लिये कहा लेकिन शिवाजी महाराज ने इसकी परवाह किए बिना अपने पिता के क्षेत्र का प्रबन्ध भी अपने हाथों में ले लिया था और लगान भेजना भी बंद कर दिया।
1647 ई. तक शिवाजी महाराज चाकण से लेकर निरा तक के भू-भाग को अपने नियंत्रण में ले चुके थे। यहां से वे मैदानी इलाकों की ओर बढ़े और तमाम देशी-विदेशी राजाओं को युद्ध में पराजित करते हुए शिवाजी महाराज ने दक्षिण कोंकण सहित कोंकण के 9 दुर्गों पर अपना अधिकार जमा लिया। कोंडाणा किले पर शिवाजी के हमले के जवाब में बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी महाराज के पिता शाहजी और उनके सौतेले भाई को कर्नाटक राज्य में बंदी बना लिया।