श्रुतम्-24
सात्विक आहार – एक चिकित्सा

आयुर्वेद के अनुसार उत्तम स्वास्थ्य के लिए आहार को महत्वपूर्ण माना गया है अतः व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए आहार से संबंधित ज्ञान का होना अत्यावश्यक है ।
हमारे उपनिषद् आदि ग्रंथों में तो आहार को जीवन कहा गया है । वास्तव में आहार स्वयं में एक औषधि है। इसके विज्ञान को जानकर हम अनेक व्याधियों की चिकित्सा कर सकते हैं । आहार का प्रभाव केवल शरीर पर ही नहीं अपितु मन पर भी समान रूप से पड़ता है । लोक प्रसिद्ध भी है *”जैसा खाए अन्न – वैसा होय मन”। आहार हमारे शरीर व इंद्रियों को पुष्ट करता है तथा प्राणों को बलवान बनाता है । इसलिए हम खाना नहीं खाते भोजन करते हैं क्योंकि भोजन हमेशा सात्विक ही होता है। आहार हमारे स्वास्थ्य के लिए तभी हितकर सिद्ध होगा जब हम इसका सेवन केवल स्वाद की दृष्टि से न करके स्वास्थ्य की दृष्टि से करेंगे ।
महर्षि वाग्भट के अनुसार हितभुक(शरीर के लिए हितकारी ) मितभुक ( भूख से कम )और ऋतभुक (ऋतु के अनुसार )भोजन करना चाहिए ।
आहार सेवन के संबंध में ऋषि चरक ने कुछ विशेष बातें बताई है जिनका हमें पालन करना चाहिए ।
भोजन करते समय मन को प्रसन्न रखें ।
हमारे शरीर की आवश्यकता अनुसार भोजन करें तथा उचित समय पर करें ।
भोजन ताजा करें न कि डिब्बाबंद , पैक ,सड़ा – गला ।
भोजन करते समय बातचीत नहीं करें ।
एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए रात्रि में दही का सेवन निषेध है ।
रात्रि में सोने से न्यूनतम 2 घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए। ताकि भोजन का पाचन ठीक प्रकार से हो सके ।
दोपहर के भोजन में सलाद तथा नींबू का प्रयोग अवश्य करें । यह हमारी पाचन शक्ति को बढ़ाते है ।
आहार में मैदा , बेसन और शक्कर का उपयोग कम से कम करें ।
भोजन के बाद गुड़ का उपयोग अत्यंत लाभकारी है ।
तेल और अन्न का उपयोग बदल – बदल कर करना अत्यंत लाभकारी है।