*श्रुतम्-184*
*सेवा और संघ का उद्देश्य*
1.कर्तव्य भाव, निस्वार्थ भाव, निष्काम भाव, अपनत्व और पूजा भाव से सेवा करना है। यही भाव हमें संपूर्ण समाज में जगाना है।
2.समाज में कोई दुर्बल, पीड़ित, वंचित, शोषित न रहे ऐसी समाज की स्थिति निर्माण हो। सेवा कार्य के माध्यम से हिंदू समाज को आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी, आत्मविश्वास से युक्त, निर्दोष अर्थात कुरीतियों से मुक्त बनाना और राष्ट्र की उन्नति में उनका सहभाग बढ़ाना। *देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखे* यह भाव जगाना।
3.सेवा कार्य से जुड़ने वाले हर व्यक्ति का चरित्र निर्माण कर राष्ट्रभक्त व्यक्ति निर्माण करना हमारा उद्देश्य है।
4.संपन्न और शिक्षित समाज का अहंभाव और पिछड़े तथा निर्धन समाज के मन के हीनभाव को दूर करना।
5.सेवा कार्य के माध्यम से समाज में जागरण तथा समाज से कार्यकर्ता निर्माण हो और उनके द्वारा सामाजिक परिवर्तन की दिशा में काम हो।
*सेवा साधना है, सेवा कार्य माध्यम है और सामाजिक परिवर्तन द्वारा विकास ही हमारा लक्ष्य है।*