*श्रुतम्-149*
*स्वदेशी आंदोलन का*
*प्रभावशाली प्रचार*
1907-08 के प्रचंड स्वदेशी आंदोलन के बाद लोकमान्य तिलक ,लाला लाजपत राय आदि राष्ट्र नेताओं को जेल की चार दीवारों में बंद कर दिया गया और उनके द्वारा जलाई गई स्वदेशी एवं राष्ट्रीयता की ज्वाला बुझ सी गई । परंतु डॉक्टर जी ने जो 1905 से 1908 तक के राष्ट्रीय आंदोलन में राष्ट्रीय शिक्षा के सबक सीखे थे उनके ह्रदय की तीव्रता लो मात्र भी कम नहीं हुई । वह राजनीति के गरम दल में शामिल हो गए । उनका 6 वर्षों तक कोलकाता में वास हुआ।
इस काल में सैंकड़ों ध्येयवादी तरुणों का मंडल उनके आसपास एकत्रित हो गया और डॉक्टर जी ने अपना कार्य क्षेत्र काफी विस्तृत कर लिया ।
उस समय के सुप्रसिद्ध बंगाली देशभक्त बाबू श्यामसुंदर चक्रवर्ती, बाबू मोतीलाल घोष, अमृत बाजार पत्रिका के संपादक और अनेक राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं से डॉक्टर जी के निकट संबंध स्थापित हो गए । सन 1908 में कोलकाता में “महाराष्ट्र लॉज “शुरू हुआ, उसमें बरार, मध्य प्रांत ,पुणे, कर्नाटक आदि प्रांतों से आए हुए कई मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थी रहते थे इसी समय श्री अन्नासाहेब की प्रेरणा से “शांतिनिकेतन लॉज” शुरू हुआ ।
शांतिनिकेतन की युवक मंडल का दबदबा न केवल कॉलेज में अपितु शहर में भी था । वहां कार्यक्रम ही ऐसे होते थे जिनसे राष्ट्रीय वृत्ति का परिपोषण हो और वहां का वातावरण भी इसी के अनुकूल रहा करता था । डॉक्टर जी का उस काल का विद्यार्थी जीवन स्वदेशी आंदोलन के प्रभावशाली प्रचार में बीता उन्होंने सैकड़ों नवीन युवक कार्यकर्ताओं को मित्र बनाया अपने कार्य क्षेत्र का खूब विस्तार किया और अनेक आंदोलन और उपक्रम शुरू किए ।