*श्रुतम्-251*
*हिंदुत्व के प्रधान पक्ष-4 त्रिकोण शुद्धि,पारिवारिक जीवन*
*त्रिकोण शुद्धि*
व्यक्ति के विचार, वाणी तथा कर्म के बीच सामंजस्य होना चाहिए। इसका अभिप्राय है कि व्यक्ति को वही बोलना चाहिए, जो वह अपने मन में सोचता है और तदनुरूप ही कार्य करना चाहिए। यही शरीर, मन एवं आत्मा की सच्चाई है और इसी को हिंदू संस्कृति में त्रिकोण शुद्धि कहा जाता है।
*पारिवारिक जीवन*
एक पुरुष एवं स्त्री के मध्य विवाह के माध्यम से निर्मित पति-पत्नी के संबंधों की पवित्रता, जिससे परिवार अस्तित्व में आता है तथा इसके बीच संबंधों का अटूट होना ही हिंदू जीवन पद्धति में प्रतिपादकों द्वारा प्रदत सुदृढ़ आधार है। उस पर ही सामाजिक जीवन संरचित है। अतः पारिवारिक जीवन को सर्वोच्च महत्व दिया गया है।
यह कहा जाता है कि जो अच्छा पारिवारिक जीवन बिता रहे हैं उन पर देवी कृपा है। इसी काल में, व्यक्ति को अर्थोपार्जन के एवं परिवारयापन, सभी अर्जन न करने वाले पारिवारिक सदस्यों को सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना, साथ ही समाज की भी किसी व्यवसाय अथवा व्यापार अथवा कार्य द्वारा सेवा करना तथा बच्चे पैदा करना, उन्हें बड़ा करना एवं अच्छे नागरिक के रूप में उन्हें ढालना- जैसे उत्तरदायित्व को वहन निर्विघ्न करना पड़ता है। परिवार के अन्य उत्तरदायित्व- अतिथि सत्कार, जरूरतमंदों की सहायता तथा सर्वजन हिताय कर्म भी रहे हैं।