*श्रुतम्-252*
*हिंदुत्व के प्रधान पक्ष-5*
*माता की संकल्पना*
माता को ईश्वर के समान सर्वोच्च पद इसलिए दिया जाता रहा है, क्योंकि वह व्यक्ति को जन्म देती है, उसका पालन-पोषण करती है। अपने बच्चों के कल्याण एवं भलाई के लिए अपनी माता से बढ़कर दूसरा कोई प्यारा नहीं है। सभी स्त्रियों को माता के समकक्ष ही स्थान दिया गया है।
माता के प्रति कृतज्ञता की भावना का विस्तार पृथ्वी तक समाहित है जो कि हमें वह सब कुछ प्रदान करती है जिसकी हमें आवश्यकता है। अतः उसकी पूजा
*भू-माता* के रूप में की जाती है। इसी प्रकार की भावना मातृभूमि शब्द से प्रस्फुटित होती है। इस कारण हिंदू जीवन पद्धति में किसी का अपना देश केवल धन या संपत्ति का द्योतक नहीं होता है, वरन् इसे माता के स्थान पर रखा गया है। इसलिए हम भारत को, भारत माता मानते हैं। केवल एक जय घोष ‘भारत माता की जय’ या वंदे मातरम इस भूमि के सभी जनों को उनकी भाषा, धर्म, जाति, क्षेत्र इत्यादि के विभेद के होते हुए भी इसी कारण प्रेरित करता है और एकता के सूत्र में जोड़ता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर (श्रीगुरुजी) ने हमारी मातृभूमि के प्रति हमारे स्नेह की व्याख्या करते हुए इस प्रकार कहा है- *’किसी की माता कितनी भी आकर्षणविहीन, अशिक्षित अथवा अन्य रूप में अशक्त हो, वह पृथ्वी पर सर्वाधिक प्यारी है। भारत माता के प्रति यही हमारी मान्यता है।’*
प्रत्येक हिंदू मातृत्व को अत्यंत महत्व देता है और उसमे स्वमाता अर्थात अपनी माता के प्रति गहन आदर होता है। स्त्री-माता (माता के रूप में स्त्री)
भू-माता (पृथ्वी माता) तथा भारत माता (उन लोगों के लिए जिनकी मातृभूमि भारत से पृथक है उनके लिए वह देश)
इसी कारण से एक हिंदू जो भी देश उसकी मातृभूमि हो उस देश के प्रति निष्ठावान होता है। यह हिंदू जीवन पद्धति का एक विशेष गुण अथवा लक्षण है।
इससे भी अधिक गाय जो हमें दूध देती है उसे भी माता के स्थान पर स्थापित किया गया है और गौ माता कहा जाता है। हिंदुओं के द्वारा खाद्य सामग्री के रूप में गौ मांस के निषेध का यही आधार है।