*श्रुतम्-200*
*हिन्दुत्व का आधार वसुधैव कुटुम्बकम्*
वसुधैव कुटुम्बकम् हिन्दु धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्)। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।
*अयं निजः परो वेति*
*गणना लघुचेतसाम् ।*
*उदारचरितानां तु*
*वसुधैव कुटुम्बकम् ॥* (महोपनिषद्, अध्याय ४, श्लोक ७१)
अर्थात् : यह मेरा है ,यह उसका है ; ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों की होती है;इसके विपरीत उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है ।
इतिहास गवाह है कि भारत के महान विचारकों व सम्राटों ने पूरे विश्व के कल्याण के लिए हमेशा प्रयास किया है। उदाहरण के लिए चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान को युद्ध की बुराइयों से जब ज्ञान प्राप्त हुआ तब उन्होंने आत्म शांति के लिए युद्ध से घबराकर बौद्ध धर्म अपनाया । यह उन महान सम्राट हीं नहीं अपितु उन महान भारतीय संस्कार के स्तंभ का उदार व विस्तृत चरित्र हीं है जिसने वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को दर्शाया ओर बौद्ध धर्म का यह संदेश भारत में ही नहीं भारत के बाहर भी स्वयं अपने बच्चों को दूत के रूप में समर्पित कर प्रचार प्रसार किया। जबकि वहीं जितने भी विदेशी हमारे देश की ओर आए सब ने भारत को केवल लूटने का प्रयास किया अपना बाजार ही बस भारत को उन लोगों ने माना। इतना होते हुए भी हमारा इतिहास बताता है कि भारतीयों ने सदैव सभी देशों की संस्कृतियों का, भाषा का, धर्म का आदर किया और अपना हिस्सा सहज ही बना लिया।
आज भी वसुधैव कुटुंबकम् भारत की विदेश नीति की नींव है। इसके अनेकों उदाहरण हैं।
*परंतु यह विचार विश्व में तभी प्रभावी हो सकता है जब हिंदुत्व प्रबल शक्ति के साथ संपूर्ण विश्व में खड़ा रहे।*