*श्रुतम्-188*
*बिहार का अकाल*
सन 1966 में बिहार के अधिकांश भागों में भयंकर अकाल पड़ा। संकट की इस घड़ी में हजारों स्वयंसेवकों ने दिन-रात एक करके बिहार के अकाल पीड़ितों में सहायता सामग्री का वितरण किया।
संघ के कार्यकर्ताओं ने 971 कुएँ खोदे और लगभग 21000 परिवारों में भोजन तथा वस्त्र बांटे।
समूचे सहायता कार्य के प्रभारी श्री जयप्रकाश नारायण ने स्वयंसेवकों का कार्य भी देखा।
उन्होंने देखा कि सहायता देते समय हिंदू-मुस्लिम का कोई भेदभाव नहीं बरता गया। *स्वयंसेवक तो अपना निजी पैसा भी खर्च कर रहे थे।* वे सहायता के पात्र लोगों की सेवा के लिए पैदल ही दूरस्थ स्थानों तक पहुंच जाते थे।
6 फरवरी 1967 को एक ऐसे ही अकाल पीड़ित सहायता केंद्र का उद्घाटन करते हुए जय प्रकाश ने कहा था- *”संघ के स्वयंसेवकों की निःस्वार्थ सेवा की बराबरी कोई नहीं कर सकता, देश का प्रधानमंत्री भी नहीं।”*
स्वयंसेवकों ने पैदल ही लगभग 500 गांवों का फेरा लगाया और लगभग 18000 परिवारों में 1500 क्विंटल अनाज का वितरण किया।
*मुष्टि धान्य* कार्यक्रम के द्वारा हर परिवार से मुट्ठी भर अनाज एकत्र किया गया । भूखों के लिए कैंटीन खोली गई। वहां उन्हें नाम मात्र के मूल्य पर खाद्य पदार्थ दिए गए।
महामारियों को रोकने के लिए 10 चिकित्सा केंद्र खोले गए। अनेक भागों में पशु आहार केंद्र खोले गए और सैकड़ों पशुओं की प्राण रक्षा की गई।