*श्रुतम्-228*
*रामप्रसाद हाथी की स्वामीभक्ति और चेतक का बलिदान*
महाराणा प्रताप का हाथी रामप्रसाद बड़ा ही बलवान था। हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर के 14 हाथियों ने उसे घेर लिया रामप्रसाद ने सभी के छक्के छुड़ा 14 हाथियों को मार गिराया। किंतु उसके महावत के मारे जाने पर वह शत्रुओं के हाथ लग गया।
मुगल सैनिक रामप्रसाद को लेकर अजमेर अकबर के पास चले गए।
अकबर ने उस रामप्रसाद का धर्मांतरण कर उसका नाम पीरप्रसाद रखा। परंतु उस स्वामी भक्त हाथी ने अन्न जल त्याग दिया और 18 दिन बाद उसका प्राणान्त हो गया। और अकबर के मुंह से अनायास ही निकल गया- ” *मैं महाराणा के हाथी को नहीं झुका सका तो महाराणा प्रताप को क्या झुका पाऊंगा।”*
धन्य रामप्रसाद जिसकी स्वामी भक्ति पर सभी को गर्व है।
*चेतक का बलिदान*
युद्ध से लौटते समय घायल चेतक ने प्रताप को लेकर 20 फीट चौड़ा बरसाती नाला पार कर डाला। नाला पार करते ही वह बुरी तरह घायल हो गया। समीप ही इमली के पेड़ के पास जाकर गिर पड़ा तथा वहीं पर उसका प्राणान्त हो गया।
इस स्वामी भक्त प्राणी के बलिदान से प्रताप बहुत दुःखी होकर बोले *आज एक घोड़ा नहीं मेरे जीवन के सुख-दुःख का साथी चला गया।*
महादेव जी के मंदिर के पास उसे समाधि देकर उसका स्मारक बना दिया गया। चेतक की समाधि हमें आज भी प्रेरणा देती है।
दो दिन बाद जब प्रताप गोगुंदा खाली कर कोल्यारी चले गए तो मुगल सेना गोगुंदा पहुंची। प्रताप के डर के कारण गोगुंदा के चारों और बाढ़ व कई खुदवा कर रही। प्रताप ने उनकी रसद सामग्री रोक दी तब मुगल सैनिकों ने विद्रोह कर अजमेर प्रस्थान कर दिया।
और जब अकबर को चेतक के बलिदान की सूचना दी गई तो अकबर ने कहा- *प्रताप ने घोड़े और हाथियों में भी ऐसा कौन सा भाव भर दिया कि वे भी इतने महान् स्वामीभक्त हो गए।*