श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग *उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद के काशी नगर* में अवस्थित है।
कहते हैं, काशी तीनों लोकों में न्यारी नगरी है, जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है।
इसे *आनन्दवन, आनन्दकानन, अविमुक्त क्षेत्र तथा काशी* आदि अनेक नामों से स्मरण किया गया है।
काशी साक्षात *सर्वतीर्थमयी, सर्वसन्तापहरिणी तथा मुक्तिदायिनी नगरी* है।
निराकर महेश्वर ही यहाँ *भोलानाथ श्री विश्वनाथ* के रूप में साक्षात अवस्थित हैं। इस काशी क्षेत्र में स्थित
1.श्री दशाश्वमेध
2.श्री लोलार्क
3.श्री बिन्दुमाधव
4.श्री केशव और
5.श्री मणिकर्णिक
ये *पाँच प्रमुख तीर्थ* हैं, जिनके कारण इसे *‘अविमुक्त क्षेत्र’* कहा जाता है।
काशी के उत्तर में ओंकारखण्ड, दक्षिण में केदारखण्ड और मध्य में विश्वेश्वरखण्ड में ही बाबा विश्वनाथ का प्रसिद्ध है।
ऐसा सुना जाता है कि मन्दिर की पुन: स्थापना *आदि जगत गुरु शंकरचार्य* जी ने अपने हाथों से की थी। श्री विश्वनाथ मन्दिर को औरंगज़ेब ने नष्ट करके उस स्थान पर मस्जिद बनवा दी थी, जो आज भी विद्यमान है। इस मस्जिद के परिसर को ही *’ज्ञानवापी’* कहा जाता है। प्राचीन शिवलिंग को आज भी ‘ज्ञानवापी’ कहा जाता है।
आगे चलकर भगवान *शिव की परम भक्त महारानी अहल्याबाई* ने ज्ञानवापी से कुछ हटकर श्री विश्वनाथ के एक सुन्दर मन्दिर का निर्माण कराया था। *महाराजा रणजीत सिंह जी ने इस मन्दिर पर स्वर्ण कलश (सोने का शिखर)* चढ़वाया था। काशी में अनेक विशिष्ट तीर्थ हैं, जिनके विषय में लिखा है–
विश्वेशं माधवं ढुण्ढिं दण्डपाणिं च भैरवम्।
वन्दे काशीं गुहां गंगा
भवानीं मणिकर्णिकाम्।।
अर्थात *‘विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग बिन्दुमाधव, ढुण्ढिराज गणेश, दण्डपाणि कालभैरव, गुहा गंगा (उत्तरवाहिनी गंगा), माता अन्नपूर्णा तथा मणिकर्णिक* आदि मुख्य तीर्थ हैं।
काशी क्षेत्र में मरने वाले किसी भी प्राणी को निश्चित ही मुक्ति प्राप्त होती है। जब कोई मर रहा होता है, उस समय भगवान श्री विश्वनाथ उसके कानों में *तारक मन्त्र* का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन के चक्कर से छूट जाता है, अर्थात इस संसार से मुक्त हो जाता है।