श्रुतम्-300
द्वादश ज्योतिर्लिंग
त्र्यम्बकेश्वर
महाराष्ट्र प्रान्त के नासिक जनपद में नासिक शहर* से तीस किलोमीटर पश्चिम में अवस्थित है। इसे त्रयम्बक ज्योतिर्लिंग, त्र्यम्बकेश्वर शिव मन्दिर भी कहते है। यहाँ समीप में ही *ब्रह्मगिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी* निकलती है। जिस प्रकार उत्तर भारत में प्रवाहित होने वाली पवित्र नदी गंगा का विशेष आध्यात्मिक महत्त्व है, उसी प्रकार दक्षिण में प्रवाहित होने वाली इस पवित्र नदी गोदावरी का विशेष महत्त्व है। जहाँ उत्तर भारत की गंगा को ‘भागीरथी’ कहा जाता हैं, वहीं इस गोदावरी नदी को *‘गौतमी गंगा’* कहकर पुकारा जाता है। भागीरथी राजा भगीरथ की तपस्या का परिणाम है, तो गोदावरी *ऋषि गौतम* की तपस्या का साक्षात फल है।
मंदिर के अंदर तीन छोट -छोटे लिंग हैं, जिन्हे ब्रह्मा, विष्णु और महेश भगवन का प्रतीक माना जाता है। यही केवल ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां तीनों ब्रह्मा, विष्णु और महेश एकसाथ विराजते हैं। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में इसकी कथा वर्णित है।
त्र्यबंकेश्वर मंदिर के पास तीन पर्वत स्थित हैं, जिन्हें *ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार* के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मगिरी को *शिव स्वरूप* माना जाता है। नीलगिरी पर्वत पर *नीलाम्बिका देवी* और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर है। गंगा द्वार पर्वत पर *देवी गोदावरी* या गंगा का मंदिर है। मूर्ति के चरणों से बूंद-बूंद करके जल टपकता रहता है, जो कि पास के एक कुंड में जमा होता है।